राकेश ने बेडरूम का दरवाजा खोला और सोपफे पर जाकर ध्म्म से बैठ गया। आज आॅपिफस में भी खूब काम था और उसे बाहर भी जाना पड़ा था। आध्े घंटे के बाद सुचित्रा आॅपिफस से घर पहुंची तो राकेश अस्त-व्यस्त सोपफे पर बैठे-बैठे ही सो गया था। थकी तो वह भी थी। प्रिफज से पानी की एक बोतल निकाली और गिलास में पानी डालकर राकेश को जगाया-‘लो, पानी पियो। आॅपिफस से आकर तुम सोते तो कभी नहीं हो। आज कुछ ज्यादा ही काम था क्या?’ एक-दो घूंट पानी पीने के बाद राकेश ने पूछा-‘तुम कब आई?’
‘दस मिनट हो गए। मैं चाय बनाकर ला रही हूं। तब तक तुम कपड़े बदल लो।’ यह कहकर सुचित्रा किचन में चली आई। चाय चूल्हे पर रखकर सुबह के जूठे बर्तन सापफ करने लगी, पिफर बेडरूम में पोंछा लगाया। इसके बाद चाय लाकर टेबल पर रख दी-‘तुम चाय पियो, मैं तब तक कपड़े धे लेती हूं।’
‘नहीं डार्लिंग, मुझे भी कुछ करने दो। तुम जाकर खाना बनाओ और मैं कपड़े धेने जा रहा हूं। काम तो तुम भी करके आई हो।’
‘ठीक है, लेकिन मेरे कपड़े मत धेना।’
‘क्यों नहीं धेना?तुम भी तो मेरे काम करती हो?’ राकेश ने सुचित्रा को आश्चर्य से देखते हुए कहा तो वह शरमाती हुई बोली-‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं। तुम मेरे कपड़े धेओगे तो क्या यह अच्छा लगेगा?’
‘इसमें अच्छे-बुरे की बात कहां से आ गई?न तो पत्नी छोटी होती है और न ही पति बड़ा होता है। ये सब हमारे बनाए हुए नियम हैं कि पत्नी खाना बनाएगी, बर्तन सापफ करेगी, झाड़न्न्-पोंछा लगाएगी, बच्चों की देखभाल करेगी और पति सिपर्फ ध्नोपार्जन का काम करेगा, लेकिन ये तब की बातें हैं, जब पत्नी घर में ही रहती थी।’ राकेश यह कहकर कपड़े
धेने चला गया। सुचित्रा किचन में जाकर खाना बनाने लगी। आध्े घंटे के भीतर ही राकेश ने सारे कपड़े धे दिए और तब तक सुचित्रा ने भी खाना बना लिया। समय से ही खा-पीकर वे सो गए।
सुचित्रा एक सुलझे हुए विचारों की महिला है। राकेश भी पाॅजिटिव सोच रखने वाला व्यक्ति है। राकेश आॅपिफस से घर लेट पहुंचता है तो सुचित्रा कोई कमेंट्स या टोन नहीं करती है और सुचित्रा देर से घर आती है तो राकेश कोई सवाल नहीं करता है। यह सब सुचित्रा के कारण ही संभव हो सका है। आज वह आॅपिफस से घर लेट पहुंची तो थके होने का रोना रोने की बजाए उसने पानी के गिलास के साथ राकेश को जगाया, पिफर चाय बनाकर दी। इसके बाद किचन सापफ किया। बेडरूम में पोंछा लगाया और पिफर बड़े ही विनम्र स्वर में बोली कि मैं कपड़े धेकर आती हूं तब खाना बनेगा। वह यह भी कह सकती थी कि चलो तुम खाना बनाओ, मैं कपड़े धेने जा रही हूं। नौकरी करके तुम थके हो तो मैं भी थकी हूं, लेकिन सुचित्रा ने अध्किार भाव का प्रयोग नहीं किया क्योंकि उसे यह अच्छी तरह से पता है कि अध्किारों की बात अगर उसने कर दी तो राकेश तो काम करने से रहा, उफपर से बहस भी शुरू हो जाएगी।
जीने का यह सबसे बेहतर तरीका है, जिसका बोध् बहुत कम पति-पत्नी को ही होता है। सुचित्रा ने पति को काम के लिए एक बार भी नहीं कहा, अकेले ही सारा काम करती रही। अंत में पति को खुद-ब-खुद ही पफील हुआ कि सुचित्रा भी तो थकी है। वह घर के सारे काम करती रही तब तो खाना रात के दस बजे तक भी नहीं बन पाएगा। ऐसे तो हम दोनों ही आराम नहीं कर पाएंगे। राकेश को ऐसा सोचने पर मजबूर किया सुचित्रा की पाॅजिटिव सोचों ने और यह सच भी है, सामने वाले को कोई चीज या कोई बात महसूस करानी हो तो आप उससे कुछ भी कहिए नहीं, बस आप जितना कर सकते हैं करते रहिए। वह अगले पल ही अपने आप से शर्मिंदा हो जाएगा। राकेश को सुचित्रा ने अपने कार्यों से इतना शर्मिंदा कर दिया कि उसे कहना ही पड़ गया कि तुम खाना बनाओ। मैं कपड़े धेने जा रहा हूं। सुचित्रा ने अपने कपड़े न धेने की बात कहकर पति के मन की पफीलिंग भी जान ली कि पति उसके कपड़े धेने के लिए तैयार है या नहीं।
ऐसे गुण एक सुपर गृहिणी में ही हो सकते है, वरना तो नौकरीशुदा पत्नियां चुप कहां रहती हैं। घर में घुसते ही वे कार्यों का बंटवारा कर देती हैं कि तुम कपड़े धेओ और मैं खाना बनाने जा रही हूं। तुम झाड़न्न्-पोंछा लगा दो, तब तक मैं किचन सापफ कर देती हूं। तुम यह कर दो, मैं वह कर देती हूं, इस तरह के शब्द पति के मन में द्वेष भाव उत्पन्न करते हैं और उसके ईगो को हवा देते हैं। पति पत्नी के ऐसे आदेशों से स्वयं को अपमानित महसूस करता है और मन में यह भाव भी भर लेता है कि नौकरी कर रही है तो घर का काम मुझसे करवाना चाहती है। पति के मन में इस तरह के भाव जब आ जाते हैं तो वह यह सोच-सोच कर अपफसोस करता है कि उसने एक नौकरीशुदा लड़की से शादी क्यों की?
पति के मन में इस तरह का प्रश्न सुपर गृहणियां उठने भी नहीं देती और अपनी व्यवहार कुशलता के दम पर पति को घर के काम करने के लिए स्वाभाविक रूप से राजी भी कर लेती हैं। कहकर जो काम आसानी से नहीं कराए जा सकते हैं, वे काम बिना कहे ही कराए जा सकते हैं। बस पत्नी में ध्ैर्य और त्याग की भावना होनी चाहिए। सुचित्रा में ध्ैर्य और त्याग दोनों का ही मिला-जुला भाव है। वह कभी भी काम के लिए पति से नहीं कहती है। अपनी शक्ति और क्षमता भर वह करती रहती है। राकेश को खुद ही पफील हो जाता है कि हाथ पर हाथ रखकर बैठने से तो अच्छा है कि वह भी एकाध् काम कर दे। इससे उसे पत्नी का साथ भी मिल जाएगा और वह सुबह जल्दी भी उठ सकेगा।
आप पति हों या पत्नी एक-दूसरे को अपने-अपने अध्किारों का अहसास न करवा कर कुछ सुचित्रा की तरह ऐसा करें कि साथी के मन में स्वाभाविक रूप से कार्यों में सहयोग देने की इच्छा प्रबल हो उठे। यह मेरा काम नहीं है, तुम्हारा है, कहना अनुचित है क्योंकि जब पति-पत्नी दोनों ही नौकरीशुदा हैं तो घर का काम सिपर्फ एक का नहीं है। पत्नी आठ बजे घर आई है तो घर के सारे कार्य निपटा कर वह खाना बनाना शुरू करेगी, तो खाते-पीते ग्यारह बज जाना ही है। पिफर सुबह उठने की जल्दी, ऐसे में पति-पत्नी की अपनी कोई भी लाइपफ नहीं रह जाती है। महानगरों में या नगरों में आजकल परिवार के नाम पर सिपर्फ पति-पत्नी और एकाध् बच्चे ही होते हैं अध्किांश पति-पत्नी नौकरी करते हैं। वे जब घर पहुंचते हैं तो किचन में जूठे बर्तन, गंदा बेडरूम और बाथरूम में सुबह के पड़े कपड़े देखकर आपस में न चाहते हुए भी झगड़ पड़ते हैं। ऐसे में पत्नी सुचित्रा की तरह समझदार होती है तो बड़ी कुशलता से ही पति को कार्यों में हाथ बंटाने के लिए स्वाभाविक रूप से राजी कर लेती है एक सुपर गृहिणी या सुपर पत्नी की पहचान भी यही है।
