आज छोटू के स्कूल में पी.टी.एम. था। तुम स्कूल गई थी?’ नितेश ने ऑफिस से घर आते ही सवाल कर दिया।
‘धूप ही इतनी तेज थी कि बाहर निकलने का मन ही नहीं किया।’ मीता ने बड़ी ही लापरवाही से कहा।
‘यह कोई जवाब हुआ?कभी धूप, कभी ठंड, कभी बारिश ये सब तो आती ही रहेंगी। मैं ऑफिस नहीं गया था?दूसरी औरतें स्कूल नहीं गई थीं कि तुम ऐसी बात कर रही हो? छोटू की टीचर रास्ते में मिल गई थीं। वह बता रही थीं कि छोटू ने हर विषय में जीरो नंबर पाया है। खुद टी.वी. देखती हो और उसे भी दिखाती हो।’
‘तो तुम क्या चाहते हो, मैं बच्चों के चक्कर में दो घड़ी टी.वी. भी न देखूं?बच्चे पढ़ें या न पढ़ें, मुझसे ये सब नहीं होगा।’ मीता इतनी-सी बात पर बिगड़ गई। उसका मूड ऑफ हो गया। नितेश ने टी.वी. उठाया और फर्श पर पटक दिया। पल भर में ही घर का माहौल लड़ाई का मैदान बन गया।
पति-पत्नी के बीच जब बच्चे आ जाते हैं, तब उनमें पहले जैसी बात नहीं रहती है। बच्चे की थोड़ी-सी भी असपफलता लड़ाई की वजह बनकर उनके संबंधें के बीच खड़ी हो जाती है। गुस्से से भरी पत्नी बर्तन पटकती है तो पति घर के कीमती सामान तोड़ डालता है।
बच्चों को लेकर मन में अधिक सपने जो पति-पत्नी पालते हैं, वे तो बच्चों के किसी भी कार्य में जरा-सा भी पिछड़ जाने पर गुस्से में यह भी नहीं देखते हैं कि वे क्या करने जा रहे हैं। बच्चे उन दोनों के प्यार की बदौलत ही तो आते हैं। यदि बच्चे पर पत्नी ने ध्यान नहीं दिया या उसकी निगरानी करने में थोड़ी-सी चूक हो ही गई तो इसके लिए अपने बरसों के संबंधें को भुला देना कहां की बुद्धिमानी है?
पत्नी के स्थान पर जरा पति रहकर तो देखे, पिफर उसे पता चल जाएगा कि बच्चों को संभालना कितना कठिन होता है और घर का काम करना कितना थका देने वाला होता है। मीता सुबह के चार बजे ही बिस्तर छोड़ देती है, पिफर उसे एक मिनट की भी पफुर्सत नहीं मिलती है। दोपहर में सबके जाने के बाद अगर वह पफुर्सत के क्षणों में दो पल अपनी पसंद की जीवनशैली अपनाती है तो इसमें बुरा ही क्या है। स्कूल में पी.टी.एम. साढ़े आठ बजे से बारह बजे तक था। नितेश चाहता तो पंद्रह-बीस मिनट का समय निकाल कर स्कूल जा सकता था। मीता छोटू को रोजाना स्कूल छोड़ने क्या जाती नहीं है कि उसने आते ही उस पर अपना रोब झाड़ना शुरू कर दिया?उसने गुस्से में आकर या एक-सी जीवनशैली से उफबकर कुछ गलत कह भी दिया तो टी.वी. पटकने की क्या जरूरत थी?आखिर नुकसान किसका हुआ। इस तरह की हरकतें अध्किांश पति करते हैं और ऐसे पति सुलझे हुए दिमाग के नहीं होते हैं। वेे एक तरह के मनोरोग से पीड़ित होते हैं, जो अपनी बात मनवाने के लिए घर के सामान तोड़ डालते हैं। वे यह समझते हैं कि सामान टूट जाएगा, तो पत्नी डरकर चुप हो जाएगी या कल से उससे बहस नहीं करेगी। उन्हें यह पता कहां होता है कि ऐसी हरकतों से पत्नी और भी अध्कि ईष्र्यालु, क्रोध्ी एवं बागी प्रवृत्ति की हो जाती है। ऐसे में वह उसकी जो इज्जत कर रही होती है, वह भी करना छोड़ देती है।
मनोवैज्ञानिकों का इस विषय में कहना है कि गाली-गलौज, मार-पीट, तोड़-पफोड़ का सहारा कमजोर दिमाग वाले पति लेते हैं, उनका सोचना होता है कि ऐसा करके वे पत्नी को अपने कदमों में झुका देंगे और जैसा वे कहेंगे, वह वैसा ही करेगी या उनके गलत-सलत कार्यों पर कोई ध्यान नहीं देगी। जबकि होता इसके विपरीत ही है, क्योंकि किसी को डरा-
ध्मका कर अच्छा इंसान नहीं बनाया जा सकता है। छोटू ने हर विषय में जीरो पाया है या वह पढ़ने में कमजोर है तो इसका मीता के टी.वी. देखने से क्या संबंध्?बच्चा पढ़ने में कमजोर है, उसके नंबर कम आए हैं, तो इसमें दोनों का ही दोष है।
किसी भी परिवार में अनुशासन सिपर्फ किसी एक के व्यवहार से नहीं आता है, इसके लिए पति-पत्नी दोनों को ही मेहनत करनी पड़ती है। घर में ऐसा सुखद और बढ़िया माहौल बनाना पड़ता है, जिसका सुंदर प्रभाव बच्चों के मन-मस्तिष्क पर पड़े।
आजकल अध्किांश लोग बच्चों को अच्छा इंसान बनाना तो चाहते हैं, लेकिन खुद को एक अच्छा मनुष्य बनाना नहीं चाहते हैं।
रीता ने वैभव के घर आते ही सवाल कर दिया-‘गरिमा को तो तुम्हें कुछ कहना ही नहीं है। वह स्कूल से घर रोजाना लेट आती है।’
‘तुम मां हो, उसके साथ ज्यादा समय बिताती हो। वह क्यों लेट आती है, तुम्हें इसका कारण मालुम होना चाहिए।’ वैभव यह कहते-कहते चुप हो गया।
‘पिता का कोई पफर्ज नहीं होता है?’
‘होता है… वही तो मैं निभा रहा हूं। रुपए-पैसे की व्यवस्था करना मेरा काम है और घर को चलाना-संभालना तुम्हारा काम है। बच्चों की और घर की जिम्मेदारी तो मैंने तुम पर छोड़ रखी है।’
‘घर के अंदर की है… बाहर की नहीं न? पिफर तुम गरिमा के स्कूल में जाकर क्यों नहीं पता लगाते हो कि वह घर लेट क्यों आती है।’
इसी बीच गरिमा वहां आ खड़ी हुई। वैभव ने प्रश्न कर दिया-‘मैं यह क्या सुन रहा हंू, तुम स्कूल से रोजाना लेट आती हो।’
‘ममा तो घर में रहती हैं। उन्हें क्या पता कि घर से स्कूल कितनी दूर है। न तो मेरे लिए रिक्शा किया है और न साइकिल ही है। पैदल आने में देर तो होगी ही…।’ गरिमा ने देर से घर आने का जो कारण बताया, वैभव ने पिफर आगे कुछ नहीं पूछा। हां, रीता ने पति को खरी-खोटी अवश्य ही सुना दी-‘ऐसे ही जिम्मेदारी निभाई जाती है?बेटी के लिए एक साइकिल भी नहीं खरीद सकते हो?’ रीता को कटाक्ष करने का मौका मिल गया था। वैभव गुस्सा हो गया। पिफर दोनों घंटे भर बहस करते रहे।
जरूरतें मेहनत करने के बाद भी आजकल पूरी नहीं हो रही हैं। पति-पत्नी अपनी जरूरतों के पूरी न होने पर जितने दुःखी नहीं होते हैं, उतने दुःखी बच्चों की जरूरतें पूरी न होने पर होते हैं। सबकी जरूरतें पूरी करना आज हर किसी के वश की बात नहीं है। महानगरों को छोड़कर बाकी सब स्थानों में रहने वाले पति-पत्नी में से प्रायः पति ही नौकरीशुदा होता है और पत्नी घर संभालती है। यही वजह है कि जहां दो-तीन या एक भी बच्चा है, वहां पति-पत्नी लड़ते-झगड़ते ही दिखाई देते हैं। पत्नी पति को सांस तक भी नहीं लेने देती है और हाड़तोड़ परिश्रम करने के बावजूद उसे पत्नी के ताने सुनने पड़ते हैं। पिफर ऐसे में हमेशा तनाव ही बना रहता है। पति को भला-बुरा कहने से अच्छा है कि पत्नी भी कोई ऐसा काम करे, जिससे आर्थिक हालात न सही, पति को कुछ सहारा तो मिले। वह सहारा मानसिक और शारीरिक दोनों ही हो सकता है। रीता और मीता अपने-अपने पतियों को सिपर्फ सुनाती ही हैं, कुछ करने के लिए तैयार नहीं हैं। आप इस खोल से बाहर आकर और कुछ नहीं तो घर के कार्य तो स्वयं अपने हाथों से करें। यदि संभव हो तो थोड़ा बहुत बाहर बाजार आदि के कार्यों में भी सहयोग कर सकती है।
