अर्पिता रात के ग्यारह बजे घर आई। घर के अधिकांश लोग सो गए थे। दबे पांव वह बेडरूम में दाखिल हुई। अभिनव दोनों बच्चों के बीच में उफंघ रहा था। किसी को डिस्टर्ब न हो यह सोचकर अर्पिता ने कपड़े भी नहीं बदले और वह दूसरे बेड पर चुपचाप जाकर लेट गई।
सुबह आंख खुली तो देखा, अभिनव आॅपिफस के लिए जा चुका है। उसने सोचा-‘जल्दी होगी, इसीलिए मुझे जगाना उचित नहीं समझा होगा।’
आज उससे सास, ननद ने भी कोई खास बात नहीं की। आखिरकार अर्पिता को ही मुंह खोलना पड़ा-‘मांजी, अभिनव मुझसे मिले बिना ही चले गए।’
‘क्यों, तुमसे बताकर नहीं गया है?तुम पता नहीं रात में कब आई। वह तो आॅपिफस से जल्दी आ जाता है। सुबह-सुबह तुम्हारी नींद में बाधा उत्पन्न करना ठीक नहीं समझा होगा।’
सास यह कहकर अपने काम में लग गई। अर्पिता को सही जवाब न मिलने पर कुछ चिंता-सी हुई। वह भी तैयार होकर आॅपिफस के लिए निकल गई। वहां पहुंचते ही उसने पफोन किया। अभिनव पफोन पर उसे नहीं मिला। एक महिला सहकर्मी ने रिसीवर उठाया-‘हलो।’
‘मिस्टर अभिनव से बात करनी हैं।’
‘उनके मोबाइल पर संपर्क कीजिए। वह आज आॅपिफस से बाहर हैं।’
अर्पिता के मन में शक के बीज का रोपण हो गया-‘वह महिला तो दिन भर अभिनव के साथ रहती होगी। अभिनव तभी तो मेरी कोई परवाह नहीं करता। मुझसे कोई सवाल-जवाब नहीं करता…’
इतनी-सी छोटी बात पर अर्पिता के मन में शक का बीजारोपण हो गया। अर्पिता घर देर से क्यों पहुंचती है, वह अब अभिनव से अपने लिए इस सवाल की आशा करने लगी है। कभी-कभी सवाल-जवाब न करने पर भी पति-पत्नी में से कोई एक शक के घेरे में आ जाता है। अर्पिता घर देर से आती है। अभिनव कोई सवाल नहीं करता है। उस पर उंगली भी नहीं उठाता है। उसका इंतजार भी नहीं करता है। शुरू-शुरू में तो अर्पिता को अभिनव का यह बर्ताव बढ़िया लगा कि चलो पति समझदार है। आॅपिफस से लेट-सेट आने पर कोई प्रश्न नहीं करता है। गाली-गलौज नहीं करता है, लेकिन आज जब उसके साथ महिला सहकर्मी के होने का अहसास हुआ, तो वह स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगी। पति उसे देर से आने पर टोके, कोई सवाल करे, ऐसी इच्छा मन में प्रबल हो उठी। अर्पिता में अचानक यह बदलाव कैसे और क्यों आया?महिला सहकर्मी अभिनव के साथ है, इस बात का पता चलते ही अर्पिता ने निगेटिव सोच पाल ली कि मौज-मस्ती करने के लिए एक महिला मित्रा है, तो वह उसकी परवाह क्यों करेगा?
अर्पिता ने अब उसके मोबाइल का नंबर मिलाया। उध्र से आवाज सास की आई तो उसने पफोन काट दिया-‘अभिनव ने तो मोबाइल घर पर ही छोड़ रखा है।’
आॅपिफस में सारा दिन वह डिस्टर्ब ही रही। काम कोई खास नहीं किया। जो मीटिंग थी, उसे भी कैंसिल कर दिया और अभिनव से पहले ही घर पहुंच गई। सास ने जल्दी आने का कारण पूछा, तो वह झल्ला गई-‘क्या मैं घर जल्दी नहीं आ सकती?’ कहकर वह सीध्े बेडरूम में चली गई। बच्चे दौड़ते हुए उसके पास आए, तो उन्हें दो-दो टाॅपिफयां देकर बहला दिया और कहा-‘दादी के पास जाओ। आज मम्मा की तबीयत ठीक नहीं है।’
रात के दस बजे अभिनव आया, तो मां ने उसे टोकते हुए कहा-‘आ गया बेटा, आज बहू न जाने क्यों परेशान है। वक्त से पहले ही आ गई है।’
अभिनव बेडरूम में जैसे ही दाखिल हुआ, अर्पिता ने सवाल कर दिया-‘तुम्हें तो मेरी कोई चिंता ही नहीं है।’
‘ऐसा क्यों कह रही हो? मुझे तो तुम्हारी चिंता बराबर रहती है।’
‘झूठे कहीं के… तुम कैसे पति हो, मैं रात के ग्यारह बजे आउफं या बारह बजे आउफं तुमने कभी मुझे टोका है कि यह कोई घर आने का टाइम है?मैं जब भी आती हूं तुम सोए हुए मिलते हो और सुबह जाग गई तो ‘हाय-हलो’ कर लिया, नहीं तो यूं ही निकल गए।’
‘तुम दुनिया की पहली बीवी हो, जो यह कह रही है कि मैं घर देर से आउफं तो सवाल-जवाब करो। मुझ पर उंगली उठाओ। तो चलो
बताओ, किससे इश्क लड़ाकर घर देर से पहुंचती हो?’ अभिनव के यह कहते ही अर्पिता तकिए से उसे मारने लगी-‘मजाक छोड़ो, मैं इस
मामले में सीरियस हूं। किसी के भी घर देर से पहुंचने पर कोई पूछता है कि देर क्यों हो गई। टाइम से घर आ जाया करो, तो अपनेपन का
अहसास होता है। तुम अपनत्व भरे शब्द कहां से बोलोगे, मेरा इंतजार भी नहीं करते हो…’
‘तुम्हारे जाॅब को मैं जानता हूं। उसमें देर-सवेर होना ही है, इसीलिए कोई सवाल नहीं करता कि तुम बुरा न मान जाओ। चलो आज से तुम्हारी वेट भी करूंगा और तुम्हें देर से आने पर टोकूंगा भी…’
अर्पिता पति के करीब आती हुई बोली-‘एक-दूसरे से सवाल करने का हक दोनों को ही है। इससे लगता है कि हम एक-दूसरे के बिना रह नहीं सकते हैं। मुझे यह अहसास तुमसे चाहिए…’ अभिनव ने अर्पिता का माथा चूम लिया।
वास्तव में ही यह अध्किार तो पति-पत्नी दोनों को ही मिलना चाहिए। टोकने, पूछने, इंतजार करने से लगता है कि कोई तो है अपना, जो घर पर मेरा इंतजार कर रहा होगा। ऐसी अनुभूति नहीं होने पर पति पत्नी से और पत्नी पति से दूर होती चली जाती है। अर्पिता को जब पति का अपनत्व तथा प्यार मिलना बंद हो गया। पति ने उसके आने-जाने की चिंता करनी छोड़ दी, तो वह स्वयं को अपमानित, उपेक्षित और घर में पफालतू समझने लगी। उसे यह लगने लगा कि अभिनव बाहर से ही संतुष्ट होकर आता है, तो वह उसके होने या न होने की चिंता क्यों करेगा। पत्नी अपने पति से प्यार ही नहीं, एक सीमित मात्रा में प्रतिबंध् भी चाहती है और पति भी यही सब कुछ चाहता है।
लेकिन आज की महिलाएं तो रोक-टोक को अपनी आजादी और उन्नति के रास्ते का रोड़ा समझती हैं। उनका यह सोचना गलत है, क्योंकि जायज और सीमित मात्रा में वही पति पत्नी से सवाल करते हैं, जो उसे चाहते हैं और उसकी चिंता करते हैं। यह प्यार का एक दूसरा रूप है, जिसे स्वस्थ एवं सुखद वैवाहिक-जीवन के लिए समझना आवश्यक है।
