राकेश सारा सामान किचन में रखकर नहाने चला गया। नंदा
किचन में गयी और एक-एक सामान खोलकर डिब्बों में भरने लगी। जब उसका ध्यान दाल और तेल की तरपफ गया तो उसका मूड अचानक ही खराब हो गया। उसने किचन से ही अपने बेटे को आवाज दी, ‘‘दीपू, पापा कहां हैं?’’
‘‘अरे, मैं बाथरूम में था। नहा रहा था। हां, बोलो क्या बात है?’’
‘‘तुम खाने-पीने के सामान में कटौती क्यों करते हो? दो किलो दाल पूरे महीने चल जायेगी?तेल भी तुम दो किलो के बदले एक किलो ही ले आये हो।’’ नंदा यह कहते-कहते आवेश में आ गयी।
‘‘देखो, गुस्सा न करो। मुझे पता है, दाल और तेल पूरे महीने के लिए कम हैं। मैंने इस बार राशन के पैसों से बच्चों की स्कूल पफीस भर दी है।’’ राकेश ने शांत भाव से कहा। नंदा का गुस्सा और भी अध्कि भड़क गया, ‘‘तो इस बार सबको भूखे मारने का इरादा है क्या?मैं पूछती हूं, तुमने ऐसी कौन-सी पफंक्शन-पार्टी की है कि तुम्हें राशन के पैसे स्कूल में देने पड़ गये?मुझसे इतने कम राशन में घर नहीं चलेगा।’’
‘‘कैसे नहीं चलेगा, तुम्हारे ही तो मायके से तुम्हारे भाई-बहन आये थे। उनको विदा करने मंे जो खर्चा हुआ, उसका ही यह असर है कि आज बजट गड़बड़ा गया है।’’
नंदा पति की इस बात पर और भी गुस्सा हो गयी, ‘‘तुम्हारे घर वाले आते हैं तो क्या खर्चा नहीं होता है?’’
‘‘देखो, बात आगे न बढ़ाओ। तुम्हारे मायके से कोई आये या मेरे घर से कोई आये आखिर खर्चा तो बढ़ ही जाता है। मेरी कमाई सीमित है। तुम मेरी पत्नी हो। इस तरह की नाजुक परिस्थितियों में कभी कभार तुम मेरा सहयोग नहीं करोगी तो कौन करेगा?राकेश ने पत्नी को शांत रहने और मदद करने की सलाह दी तो वह नाक चढ़ाते हुए बोली, ‘‘मैं क्या दाल या तेल बनकर तुम्हारी मदद करूंगी।’’
‘‘नहीं, मैंने तुम्हें जो साड़ी के पैसे दिये हैं, उन्हें घर-खर्च में लगाकर मेरी मदद करोगी। पहनने के लिए तुम्हारे पास तो साड़ियां हैं ही… अगले महीने मैं तुम्हें पैसा दे दूंगा, तुम साड़ी खरीद लेना।’’ राकेश ने पत्नी को समझाया, लेकिन नंदा तैयार नहीं हुई। वह बोली, ‘‘मैं साड़ी के पैसे तो घर खर्च में नहीं लगाउफंगी। यह तुम्हारी चिंता है कि घर कैसे चलाना है।’’
पति ने अब आगे कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा। वह कुछ पैसे दूसरे से लेने की बात सोचकर वहां से चला गया। आज की महंगाई के दौर में मध्यम वर्गीय परिवारों में पति-पत्नी के बीच ऐसी बातों को लेकर अक्सर बहस होती ही रहती है। देखने में ऐसी बातें छोटी लगती हैं, लेकिन छोटी होती नहीं हंै। पति-पत्नी दोनों ही जब तक वैचारिक और मानसिक स्तर पर एक-दूसरे के अनुकूल नहीं होते हैं, तब तक बात बनती नहीं है। पति कमा-कमा कर बूढ़ा हो जाता है, पिफर भी वह किसी को भी खुश नहीं रख पाता है। कम कमाने वाले पतियों के पत्नियों से संबंध् अध्किांश मामलों में ध्नाभाव के कारण ही खराब हो जाते हैं। ऐसा नहीं कि वे एक-दूसरे से प्यार नहीं करते हैं, लेकिन उनके संबंधें में प्यार कम और घृणा, उपेक्षा तथा गुस्सा अध्कि होता है। पत्नी और बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए समय और पैसा दोनों ही चाहिए और मध्यम वर्गीय परिवारों के अध्किांश पतियों के पास पैसा और समय दोनों का ही अभाव होता है। पत्नी जो खाना चाहती है, जो पहनना-ओढ़ना चाहती है, जिस तरह की सुख-सुविध चाहती है या बच्चों को जिस माहौल या स्कूल में पढ़ाना चाहती है, पति उसकी इन जरूरतों को या उसकी इन ख्वाहिशों को पूरा नहीं कर पाता है तो वह स्वाभाविक रूप से पत्नी की उपेक्षा और घृणा का शिकार हो जाता है। पति मजबूर होता है, लाचार होता है और अपनी सपफाई में कुछ कह भी नहीं पाता है, क्योंकि आय को जरूरतों के अनुसार बढ़ाना इतना आसान नहीं होता है।
अब राकेश की पत्नी को ही लीजिए। घर पर मेहमानों के आने के कारण बजट गड़बड़ा गया। राकेश ने घर खर्च के लिए रखे पैसों में से कुछ पैसे बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर दिये और राशन कम लाकर दिया तो पत्नी उस पर भड़क उठी। भोजन के साथ-साथ पढ़ाई भी तो बच्चों के लिए आवश्यक है। स्कूल पफीस समय से जमा न होने पर बच्चों के नाम स्कूल से कट जाते, बच्चे महीने भर घर बैठे रहते तो क्या पत्नी को यह अच्छा लगता? पत्नी ने साड़ी खरीदने के लिए पैसे रखे हैं, लेकिन वह उन पैसों को घरेलू कार्यों पर खर्च करने के लिए तैयार नहीं है।
पति किसी से उधर पैसे लेकर घर चलाये या चोरी करके घरेलू जरूरतों को पूरा करे, यह उसकी टेंशन है। ऐसा सोचना बिलकुल ही गलत है। अगर पति भी ऐसा सोचता है तो वह गलत है। घर, बच्चे और अचानक आने वाले मेहमान पति-पत्नी दोनों के ही होते हैं। मेहमान पति का हो या पत्नी का हो या पिफर किसी दूर के रिश्ते का हो, उसकी आवभगत की जिम्मेदारी तो दोनों की ही होती है। मेहमानों के आने से, किसी के अचानक बीमार पड़ने से, किसी विवाह, पार्टी या पर्व-उत्सव की वजह से घर में पैसे की कमी हो जाती है तो ऐसे नाजुक हालातों का सामना यदि पति-पत्नी दोनों ही मिलकर करते हैं तो पहाड़-सी दिखने वाली समस्या बहुत ही हल्की एवं छोटी हो जाती है। पत्नी का ऐसा सोचना कि उसने अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिए कुछ पैसे बचाकर रखे हैं पति मरे या जीये या तनाव में रहे, लेकिन किसी भी हाल में देना ही नहीं है बिलकुल ही गलत है और इस तरह की सोच को ही नकारात्मक सोच कहा जाता है। पति-पत्नी के बीच कुछ भी व्यक्तिगत नहीं होता है और उस समय तो बिलकुल ही नहीं जब घर के आर्थिक हालात नाजुक होते हैं। ऐसे हालातों में ही पति-पत्नी के संबंधें के बिगड़ने का खतरा सबसे अध्कि होता है। एक-दूसरे के प्रति थोड़ी-सी भी वैचारिक भिन्नता या उपेक्षा वर्षों के त्याग और प्यार को मटियामेट कर सकती है, लेकिन उच्च वर्गीय परिवारों में पति-पत्नी के संबंधें में मन-मुटाव आने की वजह मध्यम वर्गीय परिवारों से बिलकुल ही अलग होती है।
वहां खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने और आम जरूरतों के लिए पैसे की कोई कमी नहीं रहती है। ध्नाढ्य परिवारों में वैचारिक भिन्नता, अध्किारों और स्वच्छंदता आदि को लेकर पति-पत्नी के बीच बहसें अक्सर ही होती रहती हैं, जो एक दिन तलाक तक पहुंच जाती हैं।
डाली का पति बिजनेस के काम से शहर से बाहर था। इसी दौरान उसकी सहेली अपने पति के साथ उसके घर आयी और डाली पति से पूछे बिना ही शहर से बाहर चली गई। दो दिन के बाद डाली का पति घर आया तो उसने अपनी मां से डाली के बारे में पूछा। मां ने बताया कि वह तो अपनी एक सहेली के साथ हरिद्वार गयी है, लेकिन तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो, वह तो तुमसे पफोन पर बता कर गयी होगी।
डाली का पति चुपचाप अपने कमरे में चला गया। डाली ने तो इस बारे में उससे कुछ पूछा ही नहीं था। डाली जब दो दिन के बाद लौटकर घर आयी तो पति उस पर नाराज होते हुए बोला, ‘‘तुम किससे पूछकर अकेली दो दिन घर से बाहर रही?’’
‘‘इसमें किसी से पूछने की क्या जरूरत है। क्या मुझे इतनी भी आजादी नहीं कि मैं कहीं आ-जा सकूं?’’ डाली गुस्सा होकर बोली।
‘‘आजादी तो तुम्हें पूरी मिली हुई है। तुमने यह जो काम किया है, उसे आजादी नहीं स्वच्छंदता कहते हैं। तुमने न तो घर पर किसी से पूछा, न मुझसे ही पफोन पर बात की और चुपचाप घर से निकल गयी। यदि तुम्हें इस तरह की आजादी चाहिए तो मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना।’’
डाली का चेहरा पल भर में ही उतर गया। वह गुस्से से भिनभिनाती हुई दूसरे कमरे में चली गयी।
बस यही तो होता हैं। जहां आम जरूरतों को लेकर समस्या नहीं
होती है, वहां पति-पत्नी के बीच अध्किारों, विचारों, पसंद, नापसंद
को लेकर झगड़े होने लगते हैं, जो संबंधें को समय-समय पर चोट पहुंचाते रहते हैं।
